21-03-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"सच्ची होली कैसे मनायें?"

आज बेगमपुर के बादशाह अपने बेगमपुर के मालिकों से मिलने आये हैं। ऐसे मालिकों को देख बापदादा भी खुश हो रहे हैं कि हर बालक, मालिक बन गये हैं। संगमयुग बेगमपुर, मूलवतन बेगमपुर, स्वर्ग बेगमपुर, तीनों के मालिक। बापदादा ऐसे मालिकों को देख, मालिकों को आज के होली की मुबारक देते हैं। रंग के होली की मुबारक नहीं। लेकिन ‘हो-लिए' की मुबारक है। सब बाप के हो लिए अर्थात् हो गये। हो लिए ना? गीत क्या गाते हो? बाप के हो-लिए। जो बाप के हो लिए उन्हों को ही होली मुबारक। होंगे वा हो लिए? क्या कहेंगे? जब होली अर्थात् पास्ट इज पास्ट कर बाप के होलिए तब खुशी की पिचकारी लगाते हो। पिचकारी से रंग डालते हैं ना! तो आपकी पिचकारी से कितनी धारायें निकलती हैं? आजकल एक ही पिचकारी से भिन्न-भिन्न रंग भी डालते हैं। वह रंग लगने के बाद बेरंगी हो जाते हैं। इसलिए उन्हें वस्त्र वा अपनी सूरत ठीक करना पड़ता है। और आपका रंग इतना श्रेष्ठ और प्रिय है। जो जिसको भी लगाओ वह यही कहेगा कि और लगाओ। सदा लगाओ। आपकी खुशी की पिचकारी मनुष्य को कितना परिवर्त्तन कर देव आत्मा मना देती है। एक धारा - ‘‘मैं एक श्रेष्ठ आत्मा हूँ'', यह खुशी की धारा है। मैं विश्व के मालिक का बालक हूँ। मैं सृष्टि के आदि मध्य अन्त का नालेजफुल हूँ। ऊंचे ते ऊंचे बाप के साथ श्रेष्ठ मंच पर मेरा हीरो पार्ट है। इसी प्रकार कितनी खुशी की पाइंटस की धारायें आपकी पिचकारी में हैं। एक तो यह खुशी की पिचकारी एक-दो को लगाते हो ना। दूसरी सर्व प्राप्तियों के धाराओं की पिचकारी। जैसे अतीन्द्रिय सुख। आत्मा और परमात्मा के मिलन का रूहानी प्रेम। ऐसे और भी सोचो। यह तो कामन है। तीसरी पिचकारी, सर्व शक्तियों की पिचकारी। इन विदेशियों ने पिचकारी कब देखी है? जैसे गुलाबाशी होती है उसमें कितने सुराख होते हैं। ऐसे पिचकारी दूर से लगाई जाती है जो फोर्स से दूर-दूर तक जाती है। ज्ञान की अलौकिक पिचकारि याँ तो देखी हैं ना। अच्छा - चौथी पिचकारी ज्ञान की मूल पाइंटस। ऐसे पिचकारियों से होली खेलने से देव आत्मा बन जाते हो। गोपी-वल्लभ, गोप गोपियों से एक दिन होली नहीं खेलते लेकिन संगमयुग का हर दिन होली डे है। संगम पर होली और सतयुग मे होगी हाली डे। अभी हाली डे नहीं मनाना है। अभी तो मेहनत ही मुहब्बत के कारण हाली डे की अनुभूति कराती है। बापदादा ने बच्चों का एक दृश्य ऊपर से देखा। मेहनत का दृश्य देखा। (जहाँ नया हाल बनना है वहाँ भाई लोग रोज पत्थर उठाते हैं) कहाँ मन्दिरों में पूजे जाने वाले, प्रकृति भी आपकी दासी बनकर सेवा करने वाली, बाप भी बच्चों की माला सिमरण करते हैं - लेकिन बच्चे क्या कर रहे थे? पत्थर उठा रहे थे। यह मेहनत, मेहनत नहीं लगी मुहब्बत के कारण। समझा हमारा कार्य है, घर का कार्य है। यज्ञ सेवा है। तो बापदादा से मुहब्बत होने के कारण यह मेहनत भी एक खेल लग रहा था ना। संगमयुग की जितनी मेहनत उतनी फ्रीडम है। क्योंकि बुद्धि और शरीर बिजी रहते उतना व्यर्थ संकल्पों से फ्री रहते हैं। इसलिए कहा कि संगम पर मेहनत ही हाली डे है। बच्चों को देख बापदादा आपस में रूह-रूहाण कर रहे थे। अभी हॉल बनाने के लिए पत्थर उठा रहे हैं। लेकिन यह एक पत्थर हजार गुणा वृद्धि को पा कर हीरे मोती बन जायेंगे। जो आपके महलों में यह हीरे मोती कितनी सजावट करेंगे! वहाँ महल बनाना नहीं पड़ेगा। अभी जो मेहनत की उसका फल सजा सजाया महल मिलेगा। बापदादा देख रहे थे। बड़ी खुशी-खुशी से सेवा की लगन में मगन थे। तो अब समझा ‘होली' कौन-सी है!

पहले जलाना है फिर मनाना है। एक दिन जलाते हैं दूसरे दिन मनाते हैं। आप भी एक दिन होली अर्थात् ‘पास्ट इज पास्ट' करते हो। अर्थात् पिछला सब जलाते हो। तब ही फिर गीत गाते हो - हम तो बापदादा के हो लिए। यह है खुशी में मनाना। यादगार की होली में भी मनाने के दिन देवताओं के रूप साँग के रूप में बनाते हैं। लेकिन उसमें भी विशेष मस्तक पर लाइट जलाते हैं। यह आपका यादगार है। जब मस्तक की ज्योति जगती तो देवता बन जाते हो। बाप के हो लिए तो देवता बन जाते हो। आपका यह अनुभव और उन्हों का है- आपके अनुभव का यादगार मनाना। तो समझा आप लोगों ने होली कैसे मनाई और वह लोग क्या करते हैं? यथार्थ क्या और यादगार क्या! (बड़े-बड़े लोग एक महामूर्ख सम्मेलन भी करते हैं।) यह भी राइट है। क्योंकि जब बाप आते हैं तो बड़े-बडे लोग महामूर्ख ही बन जाते हैं, जितने बड़े उतने ही मूर्ख बनते। जो बाप को ही नहीं जान सकते तो महामूर्ख हुए ना! देखो बड़े-बड़े नेतायें जानते हैं? तो महामूर्ख हुए ना। यह भी अपनी कल्प पहले की महामूर्खता की यादगार मनाते हैं। सारा उल्टा कार्य करते हैं। बाप कहते - मेरे को जानो, वह कहते - बाप हैं ही नहीं। तो उल्टे हुए ना! आप कहते हो - बाप आया है, वह कहते - हो ही नहीं सकता। तो उल्टा कार्य करते हैं ना। ऐसे तो बहुत कुछ विस्तार कर लिया है। लेकिन सार है - बाप और बच्चों के मंगल मिलन का यादगार। संगमयुग ही मंगल मिलन का युग है। भारत में रहने वाले बच्चे तो इन बातों को जानते हैं, आज विदेश से आये हुए बच्चों को सुना रहे हैं। क्योंकि राज्य तो भारत में ही करना हैं ना। अमेरिका में तो नहीं करना है। भारत की बातें जरूर सुनेंगे, समझेंगे ना! आपकी बातें क्या बना दी हैं! कितना फर्क कर दिया है!

ऐसे होली कर होली के गीत गाने वाले, सदा भिन्न-भिन्न पिचकारियों द्वारा आत्मा की चोली रंगने वाले, सदा बाप से मंगल मिलन मनाने वाले, ब्राह्मण सो देवता बनने वाले, बेगमपुर के मालिकों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते। मुरलियाँ तो बहुत सुनी हैं। कुछ रहा है सुनने का? अभी तो मिलना और मनाना है। सुनना और सुनाना भी बहुत हो गया। साकार रूप में सुनाया, अव्यक्त रूप में कितना सुनाया, एक वर्ष नहीं लेकिन 13 वर्ष। अभी तेरहवें में ‘तेरा' ही होना चाहिए ना। तेरा हूँ - इसी धुन में रहो तो सारा सुनाने का सार आ जावेगा।

कल बच्चों के मनाने का दृश्य भी देखा है। खूब हँसा, खूब खेला। बापदादा मुस्कराते रहे। सदा ही ऐसे हँसते नाचते रहो। लेकिन अविनाशी। बापदादा बच्चों को बहलते हुए देख यही वरदान देते कि ‘अविनाशी भव'। टांगे तो थक जायेंगे लेकिन बुद्धि से खुशी में नाचते रहेंगे। अव्यक्त वतन वासी बन फरिश्ते की ड्रेस में नाचते रहेंगे तो अविनाशी और निरंतर कर सकेंगे। यह भी संगमयुग के स्वेहज है। फिर नहीं होंगे। इसलिए खूब खेलो, खाओ, मौज करो लेकिन ‘अविनाशी' शब्द भी याद रखो।

अमेरिका - एक-एक रतन अनेक आत्माओं के कल्याण के निमित्त बने हुए हैं। आत्माओं को भटकते हुए देख रहम आता है ना। अभी तो और भी ज्यादा दु:ख की हाहाकार बढ़ेगी। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे सुख की एक जरा-सी झलक भी नहीं दिखाई देती। यह सुख के साधन सब उन्हों को दु:ख के साधन अनुभव होने लगेंगे। ऐसे टाइम पर सिर्फ एक ही बाप और बाप के बच्चों का सहारा उन्हों को दिखाई देगा। सारे देश में अन्धकार के बीच में एक ही लाइट हाउस दिखाई देगा। यह धीरे-धीरे अति में जल्दी-जल्दी जाता रहेगा। तो ऐसे समय पर लाइट और माइट देने के अभ्यासी आत्मायें चाहिए। इसी अभ्यास में रहते हो? एक समय पर तीनों प्रकार की सेवा करनी पड़ेगी। मंसा भी, वाचा भी, कर्मणा भी। कर्मणा से उनको बिठाकर आथत देना। तो ऐसी तैयारी करते चलो। क्योंकि अमेरिका में जितने ज्यादा वैभव है, जितना बड़ा स्थान है उतना ही बड़ा दु:ख का अनुभव भी करेंगे। तो विनाश की तैयारियाँ चल रही हैं ना! विनाश के निमित्त आत्माओं के साथ-साथ आप स्थापना करने वाली आत्मायें भी अपना झण्डा बुलल्द करेंगी। तो स्थापना के कार्य में विशेष आत्मा को कौन लायेगा? अमेरिका। विशेष आत्माओं को लाने से अमेरिका का सेवाकेन्द्र भी वी.आई.पी. हो जायेगा ना!

2. सानफ़्रांसिसको - जैसा स्थान है, स्थान के अनुसार कौन सा झण्डा लहरायेंगे। साइंस वाले तो और भी जगह हैं। लेकिन यहाँ की विशेषता क्या है? (धार्मिक नेतायें बहुत हैं) एक भी धार्मिक नेता को अगर अनुभव करा दिया तो कितना नाम बाला हो जायेगा! तो यह विशेषता दिखाओ। जब वह लोग भी प्रैक्टिकल अनुभव सुनेंगे तो अनुभव के आधार पर आकर्षित होंगे। तो यह नवीनता दिखाओ। कुमारियाँ ऐसे विद्वानों को बाण मारें। यह कल्प पहले की यादगार है ना। तो वह कौन सी कुमारियाँ हैं? आप हो ना। कोई भी निमित्त बनें। ब्रह्माकुमार नजदीक लायेंगे और ब्रह्मा कुमारियाँ जीत प्राप्त कर विजय का झण्डा लहरायेंगी। आप ब्रह्माकुमार शिकार को लायेंगे और आप शिकार को अपना बनाकर मरजीवा बना देंगी। पहला कार्य पाण्डवों का है। फल निकालने में थोड़ा समय लगता है, जो बीज डाल रहे हो उसका फल निकलेगा जरूर। प्यार से उन्हों की सेवा करनी है। उन्हों को महान-महान कहते हुए अपनी महानता दिखानी है अगर पहले उनको कहेंगे आप तो कुछ नहीं हैं, आप रांग कर रहे हैं, तो वह तुम्हारी सुनेंगे भी नहीं। इसलिए पहले महिमा करो। जैसे मुरली में सुनते हो ना - चूहा क्या करता है? पहले फूंक देता फिर काटता है, ऐसे करो। क्योंकि फिर भी विकारी दुनिया को पिलर्स देकर ठहराने का काम तो किया है ना। तो जो किया है उसकी महिमा तो करेंगे ना। अच्छा- अच्छा कहते, अच्छा बनाते जाओ। तो समझा आपको कौन-सा कार्य करना है! यह भी आपके मैसेन्जर बन जायेंगे। इन्हों का आवाज तो बड़ा होता है ना! माइक बड़े होते हैं, इसलिए ऐसे-ऐसे को सम्पर्क में लाओ। जिसका नाम अच्छा हो, बड़ा हो। आप उन्हों द्वारा अपना बड़ा कार्य निकाल सकते हो। ब्राह्मण बढ़ाने की सेवा तो करनी ही है। लेकिन यह है एडीशन। कोई बडा प्रोग्राम रखो, उस प्रोग्राम में ऐसे वी.आई.पीज को कोई पोजीशन देकर बुलाने की कोशिश करो। उन्हों को इस कार्य में सहयोगी बनाओ। उनके पास कोई अनुभवी परिवार ले जाओ तो उसके प्रैक्टिकल लाइफ का प्रभाव उन पर ज्यादा पड़ेगा। क्योंकि वह भी प्रूफ देखने चाहते हैं कि यह क्या करते हैं।

आफ्रिका - सेवा की वृद्धि का उमंग उत्साह तो सदा रहता है ना। जैसे दृष्टान्त देते हैं कि मछली नीर के बिना नहीं रह सकती वैसे ब्राह्मण सेवा के बिना नहीं रह सकते। क्योंकि सेवा करने से एक तो स्व उन्नति और साथ-साथ अनेक आत्माओं की भी उन्नति हो जाती है। तो अपनी उन्नति के कारण भी प्राप्ति होती और दूसरे की जो उन्नति होती उसका भी शेयर जमा हो जाता। इसलिए बापदादा सदा कहते - ब्राह्मण वह जो याद और सेवा में सदा तत्पर रहें। याद में रहकर सेवा करना अर्थात् मेवा ही मेवा है। जैसे मेहनत मुहब्बत में बदल जाती, वैसे सेवा मेवा में बदल जाती। तो ऐसे सेवा का उमंग रहता है? जो जितना करता है उसका पदमगुणा हो जमा हो जाता है। अफ्रीका में भावना वाली सहयोगी आत्मायें हैं। सेवा में सहयोग देने का अच्छा उमंग-उत्साह है। एक-एक रत्न बहुत वैल्युबल और लाडला है।

‘‘सी फादर'' - इस मंत्र को सदा सामने रखते हुए चढ़ती कला में चलते चलो। जब सी फादर और फालो फादर है तो उड़ते रहेंगे जब आत्मा को फॉलो करते तो नीचे आ जाते। कभी भी आत्मा को नहीं देखना। क्योंकि आत्मायें सब पुरूषार्थी हैं। पुरूषार्थी को फॉलो करोंगे तो पुरूषार्थी में अच्छाई भी होती और कुछ कमी भी होती है। सम्पन्न नहीं। तो फालो फादर, न कि ब्रदर या सिस्टर। जैसे फादर एकरस है तो फालो फादर करने वाले भी एकरस रहेंगे।

भारतवासी बच्चों को देखते हुए बापदादा बोले - फारेनर्स का अपना भाग्य, भारत वालों का अपना भाग्य। भारत वाले भाग्यशाली न बनते तो फारेन वाले कैसे आते? विदेश की महिमा लास्ट सो फास्ट के हिसाब से है लेकिन जो हैं ही आदि में वह आदि में ही रहेंगे। भारत वालों ने भगवान को अपना बनाया है, और उन्हों को बना बनाया भगवान मिला है। अगर भारतवासी बाप को न पहचानते तो उन्हों को पहचान कौन देता? बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त तो फिर भी पहले भारत वाले हैं। गुप्त से प्रत्यक्ष पहले भारत वालों ने किया, फिर उन्होंने माना। जैसे दुकान खोलते हैं तो पहली रेढ़ी पर या पटरी पर लगाते हैं। फिर वृद्धि होते-होते बड़ी दुकान हो जाती। ऐसे भारत वालों ने पहले बहुत मेहनत की, दुकान खोले तब तो आप लोग आये हो ना! जितना सहन भारत वालों ने किया उतना फारेनर्स ने कहाँ किया है? इसलिए भारतवासी बच्चे इसमें नम्बरवन हैं। जो सहन करने में नम्बरवन हैं उन्हें वर्सा भी उसी हिसाब से मिलता है। आप लोग प्रैक्टिकल चरित्र करने वाले हो और वह सुनने वाले हैं। आप कहेंगे हमने ऑखों से ब्रह्मा में शिव बाप को देखा यही विशेषता है। वैसे तो सब एक-दो से आगे हैं क्योंकि ड्रामा अनुसार संगमयुग को ऐसा वरदान मिला हुआ है जो हरेक में कोई-न-कोई विशेषता सब से विशेष है। अभी देखो भोली की विशेषता और भाषण करने वालों की विशेषता। अगर भोली न होती तो भी काम नहीं चलता। अच्छा - यह भी होली खेल रहे हैं। आज है ही मनाना। यह भी पिचकारी लग रही है।

मुरली का सार

1. बाप दादा रंग की मुबारक नहीं देते परन्तु बाप के हो लिए अर्थात् हो गये उसकी मुबारक देते हैं।

2. खुशी की प्राप्तियों की, सर्वशक्तियों की, ज्ञान के मूल पांइन्टस आदि आदि की पिचकारियों से खेलते-खेलते तुम देव-आत्मा बन जाते हो। 3. ‘सी फादर' और फालो फादर करने से चढ़ती कला का अनुभव करेंगे।